Thursday, October 2, 2014

" स्वच्छ भारत अभियान"


पिछले कई वर्षों से हम गांधी जयंती के नाम पर आज की इस  छुट्टी का  मज़ा लेते आये हैं, परन्तु हम में से ज़्यादातर लोगो के मन में बापू के प्रति कुछ ख़ास श्रद्धा नहीं है, ना ही आज़ादी की लड़ाई की सही कीमत हम समझते हैं. मैं भी इससे भिन्न नही. मैंने भी आजतक ऐसा कुछ नहीं लिखा है जैसा कि आज लिख रहा हूँ. इस बार विशेष यह भी है कि देश के नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री, श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान का आह्वाहन किया है. दो दिन पहले टीवी पर प्रधान मंत्री जी को न्यूयार्क के मेडिसन स्वायर में प्रवासी भारतियों को सम्बोधित करते हुए सुना। उनके पूरे  सम्बोधन के दौरान मन बहुत प्रसन्न था परन्तु एक बात दिल को लग गयी. ये सोच कर बड़ी लज्जा का अनुभव हुआ की देश के प्रधानमन्त्री को विदेश जाकर देश के लोगों को इस बात के लिए जगाना पड़ा कि " भाई अपने घर की, अपनी गली की, अपने शहर की, अपने देश की सफाई कर लो, और साफ़ रखो. " यानी हम सभ्य समाजी इतना भी सलीका नहीं रखते की साफ़ रह सकें और साफ़ रख सकें. शायद नहीं, इसीलिए तो हमें ये दिन देखना पड़ रहा है. इतना ही नहीं आज के दिन उनको खुद  झाड़ू  लगाकर  दिखाना पड़ रहा है , इस उम्मीद में क़ि शायद हम पढ़े लिखे सभ्य लोग थोड़ा शर्मिंदा महसूस करें और सफाई से रहने की आदत डालें.
स्वच्छ भारत अभियान में सरकारी दफ्तरों और कार्यालयों को विशेष रूप से शामिल किया गया है. परन्तु जिस तरह से इस अभियान को चलाया जा रहा है मुझे हिंदी दिवस का स्मरण हो आता है. हो यह रहा है क़ि सरकारी अधिकारी या नेताजी पहले सुसज्जित रूप से कूड़ा रखवा रहे हैं फिर हाथ में बड़ा सा झाड़ू लिए उसे साफ़ करने का पोज़ कर रहे हैं. इसी प्रकार हो जायेगा एक सफल " स्वच्छ भारत अभियान".
खुद एक सार्वजनिक क्षेत्र का कर्मचारी होने के नाते इस बात से मैं भली भाँती परिचित हूँ कि हर दफ्तर,  कार्यालय में सफाई के लिए अलग से कर्मचारी पहले  से ही तैनात होता है. और अधिकतर सफाई कर्मचारी अपना काम करते भी हैं.  समस्या यह है कि साफ़ तो कर दिया गया पर क्या हम साफ़ रखते हैं? कहीं पान की पीक, कहीं मूंगफली के छिलके और इस प्रकार के अन्य उत्पादों से हम अपने दफ्तर की सज्जा करना नहीं भूलते. ये तो रही ऑफिस की बात जिसकी सज्जा में हम शायद इतने कुशल ना हों पर अपनी गलियों, रास्तों और सड़कों पर तो हम सबसे ज़्यादा मेहरबान रहते हैं. कुछ भी फेंकना हो, छिलके, कागज़, प्लास्टिक या फिर थूकना हो, हम लोग इतना हक़ से ये सब करते हैं जैसे ये सब साफ़ करने के लिए हमने अपने वेतन पर कोई निजी कर्मचारी रखा हो, जो हमारे पीछे पीछे ये सब साफ़ करता चले.
मुझे निजी तौर पर ये चीज़ बहुत चुभती है इसीलिए मैं इस विषय में अपने परिचितों से बात करता रहता हूँ जिससे वो भी इस विषय पर सोचें और उसी अनुरूप आचरण करें. मुझे ये महसूस हुआ कि समस्या निजत्व की है. हम अपने घर को तो इस प्रकार गन्दा नहीं करते, क्योंकि वह हमारी निजी संपत्ति है परन्तु सार्वजनिक सम्पत्तियों पर यह क्रूरता क्यों? शायद इसीलिए क्योंकि सिर्फ इनका भोग करना ही हमारा  काम है, इनका रख रखाव और संरक्षण हमारी ज़िम्मेदारी नहीं। हम से हर कोई यही सोचता है कि मुझसे इन सबसे क्या? सड़कों की सफाई तो बस सरकार करेगी, बिंदास गन्दगी फैलाना मेरा हक़ है, मैं बाकायदा इसका टैक्स देता हूँ.

आज नवरात्री के आठवें दिन ऐसे दो लोगों से मेरा पाला पड़ा. एक सज्जन तो मंदिर  द्वार पर ही टकरा गये. उन्होंने मंदिर में दाखिल होते समय सुपारी (मीठी सुपारी) का एक पैकेट  फाड़ा और एक टुकड़ा वहीँ फेंक कर सुपारी मुह में उड़ेलते हुए अंदर जाने लगे. मैंने उनको रोका और कहा कि " भाई! प्लीज़ ये रैपर यहाँ पर मत फैको". उसने मेरी शकल देखी, बड़ा अजीब सा चेहरा बनाया और दो कदम बाहर आकर दूसरा रैपर फेंक दिया।  इतना करके वह मंदिर के अंदर चलता बना. वास्तव में मैं बड़ा आहत हुआ, मेरा मन किया वहीँ उसे दो तमाचे जड़ दूँ , परन्तु ये सब करके मैं पागल जैसा प्रतीत होता जो सफाई के नाम पर हिंसक हो गया. मैंने वो प्लास्टिक का रैपर उठाकर जेब में रख लिया और मैं भी आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर निकला तो एक दुकानदार ने अपनी दुकान के अंदर से ही सिगरेट बाहर फेंकी। मैं फिर रुक गया, मुझे बड़ा गुस्सा आया। फिर मेरा मन किया कि उसे जाकर बोलूं कि "भाई सिगरेट पीनी है तो अपने पास दुकान में ऐश ट्रे रखो और सिगरेट बुझा कर कूड़ेदान में डालो" लेकिन मैं ऐसे ही आगे बढ़ गया , शायद और अपमान सहने की हिम्मत नहीं हुई।

मैं आप सभी से ये बात कहना चाहता हूँ कि ये छोटी छोटी गलतियां, ये आदतें  कल विकराल रूप लेकर हमारे सामने खड़ी होती हैं और हम केदारनाथ या कश्मीर आपदा जैसे मंज़र देखने को मजबूर हो जाते हैं. हम सब अक्सर नारा देते हैं कि "धरती को बचाओ, पर्यावरण को बचाओ ",  वास्तव में हमें खुद को बचाना है, धरती तो अपनी सफ़ाई खुद ही कर लेगी, और करती भी है।  यही हुआ केदारनाथ में और कश्मीर में. तो बस करना ये है कि अपनी आदतें सुधारें और अन्य लोगों को भी ये बताएं। फिर हमारे प्रधानमन्त्री को कम से कम सफाई जैसे मुद्दे के लिए समय और धन लगाने की ज़रूरत नही पड़ेगी, और वह अन्य बड़े और विशेष मुद्दों पर काम कर सकेंगे।
वन्दे मातरम 

Thursday, November 7, 2013

CUP OF TEA


It is 8 o’clock in the morning and I am having my cup of tea. I usually do not write in the morning but I just felt something that is why I am struggling with this key board right now. I made an undoubtedly nice tea with Adrak and Ilaichi in it but there is no fun in holding just one cup alone. This time made me think that how worthless a life becomes when u are all alone. All the enjoyment, all the luxuries becomes nothing but waste. There was a time (not long ago, only 3 years back), when I hated marriage and more than that I was very much afraid of it. But now I believe that I should be unite with someone on priority. Although that someone has been chosen and she is all set to go; just like me. But in this country things are not that easy, these are quite messed up. I just hope to resolve all such issues as soon as possible so that I can unite with my match and I won’t be having this cup of tea alone.

Sunday, October 27, 2013

Being in Love...

When she is away and you miss her, it is very natural and obvious. but this isn't just enough to know that you are in love. Actually nothing is enough to make sure that you are locked in it or I can say that nothing is required to make you believe that you are a lover. No one but you can tell this thing about you. I can only tell about myself that I am in love with some one. Being is love is actually a divine feeling. Those who fell worship it but those who couldn't get lucky do not believe its existence. It will bring you greatest happiness and deepest sorrow but I can assure you that Being in love is like Being Alive.

Pushker....just write anything!!!


This has become my usual practice to write the blog when I get upset or feel low, when I have so much in my mind but nothing to speak, when I do not want to say anything but except others to understand. I do this many times, I think of a lot of things to write about but when I open this blog, I go blank. But today I have to write something and the reason being someone’s push that “Pushker!! You have to write something today in your blog”. I made an unsaid promise to her that I will follow whatever she will say. So....starting with the things happening around me, Rahul Gandhi and Narendra Modi are top news and both of them had their rallies same day. My joining leaves came to an end today. I visited Hardoi only to see her, rest of the leaves went useless. Tomorrow is a working day and I am very afraid about what will happen tomorrow. I don’t know when I got this habit of being tensed about small things at work. Because of this habit my leaves were total waste as I could not enjoy at all. Seeing her was the only part of this week I am happy about. Moving on....Diwali is just one week away and I can very much feel the festiveness around me. I was also checking out online shopping sites like ebay, flipkart and also the buying and selling sites like OLX and Quickker. Actually I always want to change my mobile phone but I always drop the idea because I get very confused about which phone to buy. Some time I feel like selling my Bike on OLX (Its a Royal Enfield Classic 350 CC). I won’t sell it but I have to sell a few things i.e. Guitar, Computer Monitor. I guess buying and selling is not that easy for me.
About my reading habit, let me tell you that I always want to be an author. I believe to be an author one must read a lot. Currently I have 5 to 6 half read books, I make many efforts to read and finish them, but that doesn’t interest me. I don’t even know that why I want to become an author. Sometimes I enjoy cooking, but when there is no one around who admire this skill or who is a foody, it is very difficult to keep cooking for hobby. Actually I always needed that “PUSH”. In simple words, I am not a self motivated person. This doesn’t mean that I am not a performer; I just need someone to push me forward.
I know it is very negative and depressing kind of content what I am writing but right now this is the only thing what is coming out of this mind and if some one dares to read my blog, he/she must bear this.

Sunday, September 9, 2012

Gimme something to write about

I just Googled that " What to write about" and it gave me so many tips like how you can start writing with small topics. Topics like my happiest day, what can i cook, whats under my bed etc. I know that Google really wants to help me out but I just can not digest this fact that I am a starter in writing. This is just i am still scribbling in my mind and finding it very difficult to decide what to write about.
I simply asked one of my friend who is in professional copy editing to give me something to write about but she argued that this will not be joy full to write like this professionally and suggested that i should write of my heart in my blog. She just don't know that my heart is more confused than my mind not only in case of writing but in every thing in life like what to do, where to go, what to eat and lot more like this.
I am reading a lot these days like Paul Coelho, Oscar wilde and many other non famous but not for i am very  much fond of reading, I just want something in my head to talk about, to writing about. I might be travelling to places in next few days for this, Might be. I always scratch my head to coin a idea that i am very much afraid that this may turn me a bald very soon.

how to get rid of FB

Like all the other times..i forgot what i actually turned on the computer for, and now it is just Face book i am into. There are posts, messages, people on chat and so many pictures which somehow make me feel inferior or depressed. I feel that people are enjoying their life at full when i am scratching my head to figure out what i    really want to do to feel better.
One of my old friend turned professional photographer, another is studying overseas and one is hanging out with friends. Oh God why all of it making me feel kind of deprived? I know FB is not the one to be blamed but me. Its like I can make it by myself, its like I need someone to make it right.
Alright first let me sign out from my FB account, i have to make an excuse to the friends on the chat. This happens all the time u know. I turn of the computer for some other piece of work but as an obvious command my hand turn on the FB all of a sudden. Only if i get lucky i don't find any of my friend on chat and  bounce back very soon but often i find some of them hanging out there in my chat box and there starts the sequence of unworthy and unimportant chat sessions.
And u know what i feel, this is not only my problem. Many of my friends have complained me the same way what i am telling you right now. I know the inventor has not made if for this only. Even my brother told me this several times to make good use of it but this is me whom he use to tell this. I am with no hope in this case.
Some times i think of  erasing my FB profile but this will me me almost invisible to the world. I can't do this because i know that this is my only gateway to the other world. So its better to live with it and learn the better way of life.   

Thursday, July 5, 2012

A gift from the blue...with love

I did not bother to look at my watch...I did not feel the need to know what time it is....I just rushed out from the door as I heard the music of Rain... I bet this time he tested my patience at its best. One or two days delay could have been the matter of life and death to many. BUT the prayers are finally been heard and HE the great man with a blue umbrella gifted these magical liquid diamonds to the burning heart of earth. I believe many farmers were in much more need than me of this rain....but I was a great competitor in the THE RAIN SEEKER list.
                   I was actually working at that time and was engaged with many important pieces of work but I left everything and ran to be just down the blue; to taste the first rain of this season..... I enjoyed it at full. Thank you...thank you blue for this great gift.....

With Love
One with a burning heart